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Wednesday, July 29, 2020

lalkwa feeta

उसकी रंगबिरंगी चुलबुली शरारतों को देखते हुए ही शायद उसकी अम्मा और बाबा ने उसका नाम रंगोली रखा था, गांव में फैली महामारी ने महज एक साल की उम्र में ही उसके सिर से बाबा का साया छीन लिया। उस वक्त उसे शायद पता भी ना रहा होगा की मौत क्या होती है, जब भी वो अपनी अम्मा से बाबा के बारे में पूछती तो अम्मा कहती की वो उसके लिए फीता लाने शहर गए हैं, रंगोली भी अम्मा को समझाते हुए कहती " अम्मा उनको समझाई तो हो ना कि हमें भी तुम्हारी तरह लाल फीता चाहिए, हम भी तुम्हारी तरह लाल फीता लगाएंगे" अम्मा भी मुस्कुराते हुए कहती " हां बिटिया रानी अच्छे से समझा दिए हैं" रंगोली के साथ-साथ उसकी शरारतें भी बढ़ने लगी थी, कभी वो अपनी अम्मा की चप्पलें पहनकर भाग जाती तो कभी अम्मा के सिर से उसका लाल फीता लेकर भागती और खाट के नीचे छिप जाती। लेकिन आज रंगोली कमरे के कोने में बिल्कुल शांत बेठी हुई है, बाहर बरामदे में लोगों की भीड़ लगी है, रंगोली का मन है कि बाहर जाकर अपनी अम्मा से कहे कि सबको घर से निकालों उसे अम्मा के साथ खेलना है, लेकिन बाहर रोने चिल्लाने की आवाज से उसे डर सा लग रहा है, हिम्मत कर जैसे ही वो बाहर झांकने के लिए उठी तभी उसकी ताई आकर उसकी अम्मा की नई साड़ी ले जाने लगी, रंगोली अपनी ताई पर झपटते हुए चिल्लाई “ ई साड़ी हमरे अम्मा की है” ताई ने उसे दूर झटकते हुए कहा “हां हां पता है तुमरे अम्मा की है, अरे उसने ही मंगवाई है बाजार जा रही है इसे पहनकर” इतना कहकर ताई कमरे से साड़ी लेकर निकल गई। रंगोली झट से उठी और अपनी अम्मा का फीता ढूढ़ने लगी, उसे पता था कि अम्मा बिना फीता लगाए नहीं जाएगी, बड़ी मुश्किल से असे वो लाल फीता मिला जिसे लेकर वो खाट के नीचे छिप गई और सोचने लगी कि अभी अम्मा उसे ढूढ़ने जरूर आएगी...कमरे की खिड़की से उसे रोने की आवाजें साफ-साफ सुनाई दे रही थी, एक बार उसका मन भी हुआ कि वो बाहर जाकर देखे लेकिन उसे डर था कि अगर बाहर गई तो अम्मा उसे आसानी से पकड़ लेगी, इस बार रोने और चिल्लाने की आवाजों के साथ ‘राम नाम सत्य है’ शब्द भी जोर जोर से सुनाई दे रहे थे, रंगोली को लगा कि उसकी अम्मा बिना फीता लगाए ही बाजार चली जाएगी, वो दौड़ती हुई फीता लेकर बाहर निकली और देखा लोग उसकी अम्मा को लेकर जा रहे हैं, वो जोर-जोर से चिल्लाने लगी “अम्मा कहां जा रही हो , तुम्हारा फीता हमारे पास है, ऐ अम्मा ई रहा तुम्हारा ललकवा फीता” कुछ औरतें रंगोली को उठाकर फिर से कमरे में ले गई और समझाने लगी कि अम्मा बाबा के पास गई हैं, धीरे-धीरे मातम शांत हो रहा था लोग अपने अपने घरों को जा रहे थे और रंगोली एक कोने में बेठी निहार रही थी अपनी अम्मा का ललकवा फीता।

आकांक्षा



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