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Wednesday, July 29, 2020

astha aur sant


नोट: लड़की के परिवार की आस्था को कोई ठेस ना पहुंचे इसलिए उसने उपनी पहचान छुपाने का अनुरोध किया है। साथ ही ये उस लड़की के विचार हैं जिसका मकसद किसी की आस्था या भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है.


मैं एक हिंदू लड़की हूं और मेरे धर्म में साधु-संत को भगवान की तरह पूजा जाता है। क्योंकि बचपन से हमें भी यही सिखाया गया है तो मैं भी उन्हें भगवान का दर्जा देती थी । लेकिन उस दिन कुछ ऐसा हुआ कि मुझे इस शब्द तक से डर लगने लगा है। प्रभु में परिवार वालों की कुछ खास ही आस्था थी इसीलिए पूरे परिवार (यहां पूरे परिवार का मतलब लगभग 50 लोग) ने माता रानी के दर्शन करने लिए वैष्णों देवी मंदिर जाने का प्लान बनाया। सबकी छुट्टियों को ध्यान में रखते हुए ट्रेन में रिजर्वेशन कराया गया। हम सब बहुत खुश थे कि चचेरे भाई-बहनों के साथ खूब मस्ती करने को मिलेगी। आखिर वो दिन आ ही गया जब हम कटरा पहुंचे वहां से वैष्णों देवी के दर्शन कर हम शांतिकुंज हरिद्वार के लिए निकल लिए। शांतिकुंज हरिद्वार के बारे में मैं आपको एक बात बताना चाहुंगी कि अगर आपको वाकई शांति की जरूरत है तो वहां कम से कम एक बार जरूर जाईए। वहां हमें एक हॉल और गद्दे-रजाई दिए गए। पूरा परिवार वहां बैठा बातें कर रहा था कि तभी एक पुरुष जिसकी उम्र लगभग 60-70 साल रही होगी ने हॉल में एंट्री मारी। संतों की तरह ही उसने कपड़े पहन रखे थे और उसने खुद भी खुद को संत बताया इसलिए मेरे परिजनों ने उनके पैर छू कर उनका आशीर्वाद लिया और हम सभी बच्चों को भी उनके पैर छूने को कहा। मैने जब उनके पैर छुए तो उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरे सिर पर अपना हाथ फेरा। मुझे ये थोड़ा अजीब लगा इसलिए मैंने अपनी दीदी से इस बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि वो मुझे आशीर्वाद दे रहे थे। रात का समय था सभी लोग सोने के लिए अपने-अपने गद्दे बिछा रहे थे क्योंकि वो संत भी हमारे परिवार से काफी घुल-मिल गए थे इसीलिए सबने उनसे कहा कि वो भी वहीं अपना गद्दा बिछा लें। उन्होंने अपना गद्दा वहां बिछाया जहां हम सभी बच्चों ने बिछा रखा था। रात में सब सो रहे थे तभी मुझे लगा कि कोई मेरा हाथ पकड़ कर सहला रहा है जबतक मैं कुछ समझ पाती मैने देखा कि मेरे बगल में वो संत लेटा हुआ था और उसके हाथों में मेरा हाथ था। उसे देखते ही मन हुआ कि खूब जोर सो चिल्लाऊं लेकिन उसने मुझे चुप रहने का इशार किया और अपना बिस्तर वहां से लेकर अलग चला गया। डर से पूरी रात में सो नहीं पाई कि कहीं अगर मेरी आंख लग गई तो वो फिर से मेरे बगल में ना आ जाए। सुबह हुई तो देखा वो जा चुका था मैंने दीदी को सारी बात बताई तो उन्होंने कहा की किसी और को बताने कि जरूरत नहीं है अगर कहीं भी वो दिख गया मैं खुद उसे सबक सिखाउंगी साथ ही उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे उसी वक्त चिल्लाना चाहिए था क्योंकि यहां लोग तुमसे ज्यादा संत पर भरोसा करेंगे। उनकी ये बात मेरे दिमाग में बैठ गई की कुछ भी गलत होने पर तुरंत प्रतिक्रिया देनी चाहिए। खैर उस हादसे के बाद से मैंने कभी भी किसी साधु-संत पर भरोसा नहीं किया और मेरे परिवार के लिए भी आज भी ये लोग भगवान के समान हैं। 

आकांक्षा

1 comment:

  1. tumhari Didi ne jo kuch kiya wo bahut achcha kiya wo tumhare Hit me tha

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